होलिका कौन जाति की थी
होलिका कौन जाति की थी
प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नामक राक्षस रहता था। ‘मैं परमेश्वर से भी उत्तम, शक्तिमान हूँ कहता था।। ब्रह्मदेव का तप कर उसने, इक ऐसा वर पाया था। देव न दानव, पशु ना मानव, वध उसका कर पाया था।। मृत्यु न उसकी संभव घर ना बाहर, दिन या रात में। मृत्यु न उसकी धरा गगन में, शस्त्र अस्त्र के घात में।। लगा समझने अमर स्वयं को देता जग को कष्ट महान। महारानी कयाधु ने जन्मी, भगवदभक्त एक संतान।। माँ के पेट में ही नारद मुनि से उसने पाया था ज्ञान। पर हिरण्यकश्यपु था उसकी इस विशेषता से अनजान।। असुर पुत्र होकर भी था प्रह्लाद विष्णु का भक्त महाना नित्य नाम नारायण का जप करता था श्री हरि का ध्यान।। बालक को समझाता दानव, ‘मुझे भजो, तज हारे का नाम।” हुआ न विचलित, तजी न श्रद्धा, हुआ न धमकी का परिणाम कहा असुर ने “पुत्र! शत्रु का भक्त शत्रु ही है मेरा। कुलनाशक है कंपूत! अब वध ही उचित मुझे मेरा
भक्त पुत्र का वध करने को, किए असुर ने कपट अनेक। सर्प कटाए, गज ने कुचला, दिया उसे पर्वत से फेंक ।। पर जिसके रक्षक श्रीहरि हों, उसे कौन सकता है मार। क्रोध दृष्ट का बढ़ता जाता, था असफल होकर हर बार।। बहिन होलिका दानव की थी, दुष्ट भाई सी, मन अपवित्र । आग से जलने दे ना उसको, प्राप्त ओढनी एक विचित्र ।। उसे ओढ़ बैठी पावक में, लिए गोद छोटा-प्रह्लाद। बिना डरे प्रह्लाद था करता, श्री हरि को मन ही मन याद ।। राख हो गई स्वयं होलिका, जला भक्त का एक न बाल। भक्ति विजय की पावन घटना, स्मरण सभी करते हर साल ।। फागुन मास पूर्णिमा की तिथि, पर्व होलिका का विख्यात । जो बुराई की है प्रतीक, होलिका दहन होता इस रात ।।